DISCHARGE IN CRIMINAL CASES
कानून को दो तरह से पढ़ा जा सकता है। एक तरह तो किसी विषय पर कानून की स्थिति को जाना जाए, FIR दर्ज करने पर क्या कानून है, बेल पर क्या कानून है, Discharge पर क्या कानून है, Search & Seizure पर क्या कानून है किसी विषय पर जो भी कानून है उसको पढ़ा जाए और समझा जाए। उसकी समस्याओं पर हल ढूढा जाए। कानून का इस प्रकार अध्ययन हमारे False Allegation Warriors and Young Advocate Colleagues करते हैं। तात्कालिक तरीके से कानूनी समस्याओं को हल करने के लिए यह तरीका कारगर होता है।
कानून को दूसरी तरह पढ़ने का तरीका है कि कानून की प्रवृत्तियों को पढ़ा जाए। जो कानून का स्वरूप आज है वह कहाँ से आया और कैसे बना। कानून के पुराने एडवोकेट्स, अध्यापक, शोधछात्र एवं जजेस कानून को इसी प्रकार से पढ़ते हैं। यह भविष्य में कानून के बढ़ने की दिशा को सूचित करता है। हमारा चैनल क्योंकि जनसाधारण को सही कानून का ज्ञान देने की कोशिश करता है इसलिए हम आपको दोनों तरीकों से कानून को आपके सामने रखेंगे ताकि आप सही बात को समझ सकें। आज का विषय Discharge in Criminal Cases.
आज हम सीखेंगे कि Discharge in Criminal Cases
- किस स्टेज पर उपलब्ध होता है
- किस सैक्शन में Discharge मिल सकता है उसकी कानूनी जरूरते क्या है
- सुप्रीम कोर्ट का पुराना कानून क्या है
- सुप्रीम कोर्ट का नया कानून क्या है,
- नए कानून में सुप्रीम कोर्ट ने क्या बदलाव किया है, और
- आपको अपने केस में Discharge लगाने से पहले क्या जाँच कर लेनी चाहिए
सवाल है कि Criminal Case में किस स्टेज पर डिस्चार्ज मिल सकता है
जवाब है कि हम यहा सेशन्स ट्रायल की ही बात करेंगे। जब पुलिस/IO चार्जशीट दाखिल करता है तो मजिस्ट्रेट साहब उसकी कॉपीज़ आरोपी को देते हैं। इसके बाद सब सेशन्स ट्रायल केसेज मुकदमा चलाने के लिए सेशन्स कोर्ट में कमिट कर दिए जाते हैं। यहाँ सेशन्स कोर्ट में सबसे पहला काम है आरोपी के चार्ज/डिस्चार्ज पर फैसला करना। अधिकतर आरोपी डिस्चार्ज की कामना करते हैं लेकिन अनुभवी एडवोकेट्स उनको इस तरह पैसा और संसाधन नष्ट करने से रोकने की कोशिश करते हैं।
सवाल है कि Discharge मिलता है और उसकी कानूनी आवश्यकताएँ क्या हैं
सेशन्स ट्रायल में Discharge पाने के लिए Section 227 CrPC में सेशन्स कोर्ट के सामने आर्ग्यूमैंट्स करने पड़ते हैं। Section 227 CrPC के अनुसार जज
- केस के रिकॉर्ड के ऊपर विचार करके, व
- साथ भेजे गए Documents को देखकर तथा
- आरोपी व प्रोसीक्यूशन को सुनकर
यह पाता है कि आरोपी के खिलाफ कार्यवाही करने के पर्याप्त आधार नहीं हैं तो वह उपरोक्त कारणों को लिखते हुए आरोपी को डिस्चार्ज करेगा।
सवाल है कि Discharge को लेकर सुप्रीम कोर्ट का पुराना कानून क्या रहा है
जब Sessions Court यह देखता है कि Discharge under Section 227 CrPC बनता है या नहीं तो कोर्ट तीन बातें देखता है-
- Record of the case and the Documents submitted therewith
- Submissions of the accused
- Submissions of the Prosecution
इसमें इन बिंदुओं का क्रम बहुत महत्त्वपूर्ण है। पहले रिकॉर्ड फिर आरोपी और अंत में प्रोसीक्यूशन।
सुप्रीम कोर्ट ने Discharge पर परम्परागत कानून Union of India v. Praful Kumar Samal (1979) 3 SCC 5, में Supreme Court में तय किया था। संक्षेप में देखें तो कोर्ट के पास Record of the case पर उपलब्ध एविडैन्स को देखने की शक्ति होती है कि क्या यह सबूत आरोपी के खिलाफ गंभीर संदेह पैदा करते हैं और जो आरोपी द्वारा समझाया नहीं जा सका है। यदि ऐसा लगे कि दो नजरिए संभव है अर्थात एक द्वारा आरोपी को डिस्चार्ज किया जा सकता है और दूसरे द्वारा नहीं तो भी कोर्ट द्वारा आरोपी को डिस्चार्ज किया जाना गलत नहीं होगा।
यानी कि परम्परागत कानून में Discharge का प्रतिशत 50 था। बात दोनों तरफ जा सकती थी। लेकिन जैसे जैसे भारत का कानूनी निजाम विफलता की ओर जाने लगा, केसेज के अम्बार लगने लगे, पुलिस की Investigation की गुणवत्ता गिरने लगी, ज्यूडिशियरी में भ्रष्टाचार बढ़ने लगा और अनेक आरोपी Discharge पाने में कामयाब होने लगे तो सुप्रीम कोर्ट ने धीरे धी Discharge का कानून कठोर कर दिया।
2021 में Supreme Court ने The State vs Uttamchand Bohra Criminal Appeal No. 1590 of 2021 ने अनेक पॉइन्ट्स लिख दिए हैं। कुल मिलाकर सात पॉइन्ट्स लिखे हैं। इसमें एक विशेष पॉइन्ट यह दिया गया है कि इस स्टेज पर कोर्ट को रिकॉर्ड तथा उस पर लगाए गए सबूतों को देखना होगा कि क्या उस साक्ष्य से आरोपी के खिलाफ आरोप बनता दिखाई देता है। और इस साक्ष्य में बयान तथा बरामदा वस्तुएँ व दस्तावेज सब देखा जाएगा। अब इसके बाद यदि बनता है तो आरोप निर्धारित कर देना चाहिए। नहीं बनता है तो डिस्चार्ज कर देना चाहिए।
इसमें एक विशेष बात छिपी है कि बयान तो आरोपी के खिळाफ मिलेंगे ही मिलेंगे। तो इस प्रकार से अब यदि छोटा भी नुक्ता अगर आरोपी के खिलाफ मिल गया है तो उसको Discharge नहीं मिल पाएगा। बयान हो, दस्तावेज हो, मेडीकल रिकॉर्ड हो कहीं भी आरोपी के खिलाफ कुछ नहीं है तो ही उसको Discharge मिल सकेगा। दूसरी बात कि इस Discharge की स्टेज पर आरोपी अपनी डिफैन्स का कोई एविडैंस भी नहीं लेकर आ सकता है। क्योंकि कानून केवल Prosecution Material को ही देखने की इजाजत देता है। जो चाँस पहले 50-50 थे वे अब तक 90-10 बन चुके थे।
सवाल है कि Discharge पर वर्तमान कानून क्या बन चुका है
वर्तमान कानून देने वाले केस का नाम है
Captain Manjit Singh Virdi Vs Hussain Mohammed Shattaf
Criminal Appeal No. 1399 of 2023
Justice Abhay S. Oka & Justice Rajesh Bindal
May 18, 2023
इसमें 14.05.2006 को लोनावाला के एक बंगले में Manmohan Singh Sukhdev Singh Virdi की खून से सनी लाश मिलती है।
आरोपी के विदेश में रहने के दौरान उसकी पत्नी के संबंध मृतक से हो गए थे जिसी भनक आरोपी को लग गई थी। आरोपी पर कुछ अन्य लोगों की सहायता से मृतक की हत्या करवाने का आरोप था।
पुलिस/IO ने प्रमुख आरोपी का मनौवैज्ञानिक प्रोफाइल भी तैयार करवाया था। Polygraph Testing तथा Brain Electrical Oscillations Signature Profiling (BEOS) भी पुलिस/IO ने तैयार करवाई थी। ये सारे साइंटिफिक परीक्षण आरोपी की संलिप्तता की ओर इशारा कर रहे थे।
चार्जशीट के बाद आरोपी ने ट्रायल कोर्ट में Discharge से लिए एपलीकेशन लगा दी थी।
ट्रायल कोर्ट ने Discharge Application को खारिज कर दिया जबकि हाईकोर्ट ने उस एपलीकेशन मंजूर कर दिया। प्रोसिक्यूशन का कहना था Discharge की स्टेज पर चार्जशीट पर लगे एविडैंस को हाईकोर्ट के द्वारा गुणदोष के आधार पर नहीं परखा जा सकता था। आरोपी को Discharge दिया जाना गैर कानूनी था इसलिए हाईकोर्ट के निरणय को निरस्त किया जाए।
सुप्रीम कोर्ट ने State of Rajasthan vs Ashok Kumar Kashyap (2021) 11 SCC 191 के हवाले से बताया कि कोर्ट को केवल इतना भर देखना है कि आरोपी के खिलाफ कोई आरोप बनता है या बिलकुल नहीं बनता है।
State of Karnataka v. M.R. Hiremath, (2019) 7 SCC 515 केआधार पर सुप्रीम कोर्ट ने बताया डिस्चार्ज पर विचार के दौरान कोर्ट मानकर चलेगा कि Prosecution Material सत्य है और फिर देखेगा कि उस मैटीरियल के आधार पर चार्ज बनता है या नहीं। दोषसिद्धी की संभावना ना देखी जाए।
वर्तमान केस Manjit Singh Vs Hussain Mohammed में कोर्ट ने कहा कि बेहतर है कि मामले के ट्रायल का इंतजार किया जाए जहाँ हर बात Proved/Unproved हो जाएगी।
सवाल है कि अपने केस में Discharge की संभावना तलाशते समय आप किस बात पर ध्यान दें
जवाब है कि जब भी आप अपने केस मे Discharge की संभावना देख रहे हों तो आपका सारा Prosecution Material देखना होगा। कहीं कोई बयान, कोई दस्तावेज, कोई साक्ष्य ऐसा ना दिखाता हो कि आपने अपराध किया है। यहाँ Manjit Singh Virdi Vs Hussain Mohammed निर्णय के दो बिंदु निर्णायक होंगे अर्थात वही तय करेंगे कि आपको Discharge मिलेगा या ट्रायल में जाना पड़ेगा और वहीं मुद्दों की सच्चाई तय होगी। इस केस में बताए दो पॉइन्ट्स हैं –
- पूरे प्रोसिक्यूशन एविडैंस को सत्य मानने के बाद भी यदि आरोपी द्वारा अपराध करना नहीं दिखाई देता है तो वह Discharge हो जाएगा
- आप प्रोसिक्यूशन एविडैंस की सत्यता पर सवाल उठाते हैं तो उन सवालों को केवल ट्रायल के दौरान ही हल किया जा सकेगा अतः ट्रायल का सामना करें।
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