इंडियन लीगल सिस्टम
इंडियन लीगल सिस्टम या Indian Legal System (E) इस विश्व का विशालतम Legal System है। यह 150 अरब लोगों को नियंत्रित करने वाला लीगल सिस्टम है। इसके अनेक स्तर हैं। कुछ पर संसद कानून बनाती है कुछ पर राज्यों की विधान सभाएँ। कुछ कानून तो लोकल स्तर और संस्थान स्तर पर भी बनते हैं। कुछ कानूनों को केन्द्रिय एजेंसियाँ जैसे सीबीआई, प्रवर्तन निदेशालय आदि लागू करती हैं और कुछ राज्यों की पुलिस नियंत्रित करती हैं।
जानकार कहते हैं कि कानून का व्यवहारिक ढाँचा किताबी कानून से अलग है। उसके बहुत से कारण हो सकते हैं।
पहला कारणः कि यह Indian Legal System (E) मूल रूप से उन गोरे लोगों ने बनाया था जिनका उद्देश्य भारत का कानूनी विकास नहीं था बल्कि भारतीय जनता के ऊपर सरकारी मशानरी का कब्जा बनाए रखना था।
दूसरा कारणः कि भारत में अन्य संस्थानों जैसे ज्यूडिशियरी, एडमिनिस्ट्रेशन, पुलिस या थिंक टैंक्स की अपेक्षा राजनीतिक ताकतें और उनके दलाल अधिक विकसित हुए हैं। इसी कारण से जैसे ही राजनीतिज्ञों के हाथ में ताकत आती है अन्य संस्थान उनके सामने बौने होने लगते हैं। ऐसे उदाहरण देखे गए हैं कि अपहरण करने वाले अपराधियो को पकड़ने की बजाय पुलिस ताकतवर राजनीतिक लोगों की भैंस ढूँढने को अधिक प्राथमिकता देती है।
अप्रभावशील न्यायपालिका: न्यायपालिका के जानकारों के मुताबिक न्यायपालिका के फेल होने के कई कारण हैं। काम का बोझ है, कम जज हैं, न्यायालयों की कम संख्या है। लेकिन जानकार कहते हैं कि न्यायपालिका में दलाल भी भीतर तक घुस गए हैं। मीडिया द्वारा प्रचारित कुछ केसिज़ को छोड़दें तो आम आदमी का मुकद्दमा नीचे ही दबा रहता है। सुप्रीम कोर्ट तक में जब तक आम आदमी का मुकद्दमा डिफैक्ट्स की दहलीज पार नहीं कर पाता है तब तक टीवी का एंकर अपने मुकद्दमा में मनमर्जी का रिलीफ लेकर घर लौट जाता है।
घूसखोरी: जानकार लोग यह भी कहते हैं कि Indian Legal System (E) में कानून का वह रूप और रुतबा नहीं है जो किताबों में पढ़ाया जाता है। घूसखोरी का बड़ा सवाल है। जहाँ दलाल और दलाली होंगे वहाँ घूसखोरी ही सबसे प्रभावी तरीका होगा। भारतीय अदालतों से गुजरने वाले लोगों से पूछो तो वो बताते हैं कि घूसखोरी ने उन्हें तबाह कर दिया और तब भी उन्हें वह नहीं मिल पाया जिसे न्याय कहा जाता है। टीवी का वही एंकर अपनी व्हाट्सएप चैट में लिखता है कि उसने उस जज को खरीद लिया है।
तो इस Indian Legal System (E) के लोग कानून और न्याय के नाम पर मृग मरीचिकाओं के पीछे भाग रहे हैं। कोई नहीं जानता कि उसकी इस रेस का मकसद क्या है? क्या यह रेस कभी खत्म भी होगी या नहीं? क्या उसके हाथ कभी कुछ आएगा भी या नहीं? ये सवाल बिना जवाब वाले सवाल हैं। इनका जवाब कोई नहीं जानता। ना आप ना मैं ना वकील और ना कोर्ट।
तो इन्हीं सब सवालों को उजागर करने के लिए, उन पर चर्चा करने के लिए और उनके सभी पहलुओं पर गौर करने के लिए हम इस चैनल पर यह Indian Legal System शुरू कर रहे हैं।
हमारा उद्देश्य यह नहीं है कि हम क्राँति करें और हम पर गीत लिखे जाएँ लेकिन इतना जरूर है कि यदि हम अपने दैनिक जीवन में कुछ सावधानियाँ बरतें और कुछ जानकारियाँ हासिल कर लें तो हम लोग कानून के उस तेल निकाल कोल्हू से बच सकते हैं जिसमें कभी कोई गलती से भी फँस जाए तो उसका केवल छिलका ही बाहर निकल पाता है, बाकी तेल तो कोल्हू का तेली निकाल लेता है।
आइए मिलें एक साथ और शुरू करें – Indian Legal System
Another historical aspect on Indian Legal System
The question is whether just the presence of matching DNA significant (regardless of whether it came from semen, cells or another body fluid).
Were there ‘legitimate’ opportunities for a DNA transfer
People are equally aggrieved by the Bad Convictions. The best remedy against a Bad Conviction is to challenge it before a superior Court in Appeal / Revision.
The Advocate decides it.
This is a step by step explanation for understanding STRs in DNA fingerprinting. Even a Layman can understand the technical terminology used in those Reports.
Better to read it.
You are made Victim of False Allegation consequent to a greed, revenge, retribution or for trapping you so that your adversary attains another goal. They misuse the Law. And Someone pays for the whole life.
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