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Age Determination under POCSO Act

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आजकल POCSO Act के Prosecutions बहुत अधिक सामने आ रहे हैं। जहाँ देखो कोई ना कोई नौजवान और कई केसिज़ में तो प्रौढ़ भी इन केसिज़ में फँसे नजर आते हैं। कानूनों को बहुत तिरछा बनाया गया है और प्रथम दृष्टया prima facie इन केसिज़ का कोई तोड़ भी नजर नहीं आता है।

POCSO Act के दो प्रावधान खासतौर से आरोपी युवकों के लिए अधिक उपद्रव करते नजर आते हैं। पहला तो यह है कि Section 29, 30 of the POCSO Act में एक Reverse Presumption बना दी गई है। जो आरोपी को गुनाहगार मानकर केस की शुरुआत करती है। यह बहुत उल्टा काम है। यह न्याय के स्थापित सिद्धाँतों के विपरीत काम है। न्याय सिद्धाँत के अनुसार जब तक साबित ना हो जाए आरोपी को निर्दोष माना जाता है। पर यहाँ जब तक बरी ना हो जाए आरोपी को दोषी माना जाता है।

POCSO Act का दूसरा प्रावधान जो आरोपियों को परेशान करता है वह Prosecutrix की उम्र के निर्धारण से संबंधित है। अलग अलग एजेंसियाँ मैं तो कहूँगा कि अलग अलग केसिज़ में अलग अलग तरीके को अपनाया जा रहा है। अरोपी प्रायः कन्फ्यूज हो जाते हैं।

तो आज इसी विषय पर विडियो में चर्चा करते हैं कि POCSO Act में कैसे Prosecutrix की आयु का सही निर्धारण किया जाए।

Sec 34 of the POCSO Act कोई व्यक्ति Child या बालक है या नहीं इस बात को निर्धारित करने का अधिकार Special Court POCSO Act को देता है। साथ ही यह भी दिशा निर्देश दिया गया है कि आयु का यह निर्धारण Juvenile Justice Act 2000 के अनुसार किया जाएगा। POCSO Act वर्ष 2012 में बना था और Juvenile Justice Act वर्ष 2000 में बना था। लेकिन बाद में यह Juvenile Justice Act वर्ष 2015 में संशोधित किया गया था। इस वर्ष 2015 में Juvenile Justice Act के दोबारा नए रुप में आने के कारण अब POCSO Act Cases की दो कैटेगरीज़ बन गई हैं वे जो वर्ष 2015 से पहले रजिस्टर हुए थे और वे जो वर्ष 2015 के बाद रजिस्टर हुए हैं।

पहले उन केसिज़ को देखते है जो वर्ष 2015 से पहले के हैं और जिनमें उम्र का निर्धारण Juvenile Justice Act 2000 के तहत किया जाना है। Juvenile Justice Act 2000 में Section 68(1) के अन्तर्गत रुल्स के अनुसार निर्धारित किया जाना था। ये Rules 2007 कहलाते थे। इन रुल्स को देखने पर उनमें रूल 12 सबरूल 3 तथा 7 में उम्र को निर्धारित करने की विधि दी गई थी।

2010 में केस State of MP  Vs Anup Singh Crl. Appeal No. 442 of 2010 में यह सवाल Supreme Court के सामने आया तो उन्होंने कहा बालक की उम्र का निर्धारण Rules 2007 made under JJ Act 2000 के तहत ही किया जाएगा।

Mahadev v. State of Maharashtra (2013) 14 SCC 637 में Supreme Court ने Rule 12(3) विवेचना की और बताया कि उम्र निर्धारित करने का सही तरीका इस प्रकार है

  • Matriculation certificate or equivalent
  • Date in the record of the first school
  • Panchayat or Municipal Council certificate
  • Medical Test

उसी वर्ष जुलाई में Jarnail Singh vs State of Haryana (2013) 7 SCC 263 का केस आया उसमें Supreme Court ने बहुत महत्त्वपूर्ण बात कही जो आज तक भी कोर्ट में नजीर दी जाती है। Supreme Court ने कहा उम्र निर्धारण के समय यह नहीं अन्तर किया जाना चाहिए कि बालक Delinquent या In conflict with Law है या पीड़ित है। सभी रूपों में उसकी आयु के लिए Section 68(1) of JJ Act 2000 Read with Rule 12 of Rules 2007 का ही सहारा कानूनी रूप है। उन्होंने State of MP  Vs Anup Singh Crl. Appeal No. 442 of 2010 को सही ठहराया।

इसके बाद JJ Act 2015 आ गया।

इस नए Act में कुछ परिवर्तन किए गए। Rule 12 of Rules 2007 को अब नए Act में Section 94 बना दिया गया है। यानि की उम्र निर्धारण को अधिक मजबूत बना दिया गया है।

दूसरा परिवर्तन यह किया है कि अब उम्र निर्धारण की विधि तय कर दी गई है। Procedure बना दी गई है। और सभी विद्वान दर्शक जानते हैं कि Violation of Procedure के लिए Article 21 of the Constitution दिया गया है। तो आरोपी को इससे कुछ लाभ हो सकता है।

तीसरा परिवर्तन यह हुआ कि अब Section 94 of JJ Act 2015 के तहत् यह एक Presumption of Fact है। कानून में यह बहुत प्रचलित बात है कि All Presumptions are rebuttable. सही हिन्दी में शायद ना बता पाँऊ पर जिसकी मंशा यह है कि सभी पूर्व-अवधारणाओं को तथ्यात्मक सबूत के द्वारा गलत सिद्ध किया जा सकता है।

इसका अर्थ यह हुआ कि यदि आरोपी किसी सबूत के द्वारा यह दिखा सके कि Section 94 of JJ Act 2015 में अपनाई गई  सामग्री Genuine and Authentic नहीं है तो इसका लाभ उसे मिल सकता है।

Section 94(2) of JJ Act 2015 के अन्तर्गत बताया गया है कि किन किन आधार पर किसी बालक की उम्र का निर्धारण होगा। इसके अनुसार बालक की उम्र के निर्धारण में निम्न मानकों का ध्यान रखा जाएगा।

New determinants

  • School Certificate
    • Term – First school has been removed.
  • Matriculation certificate or equivalent
  • Panchayat or Municipal Council certificate
  • Medical Test

इन मानकों में पिछले एक्ट के मुकाबले कुछ मामूली सा बदलाव किया गया है। अब पहली प्राथमिकता स्कूल सर्टिफिकेट को दी गई है। पुराने कानून में School Certificate को दूसरे पायदान पर रखा गया था लेकिन इस नए कानून में यह पहले पायदान पर आ गया है। पुराने कानून में केवल पहले स्कूल के रिकॉर्ड को मान्यता दी गई थी लेकिन अब किसी भी लेवल के School Certificate को मान्यता मिल गई है।

दूसरे दर्जे की मान्यता Matriculation certificate or equivalent को दी गई है। पुराने कानून में Matriculation certificate or equivalent पहले पायदान पर था। अब यह सरक कर दूसरे पायदान पर आ गया है।

यदि School Certificate व Matriculation certificate में से कोई भी उपलब्ध ना हो तो Panchayat or Municipal Council certificate पर विचार करके बालक की उम्र तय की जाएगी।

यदि ऊपर बताए गए तीनों में से कोई भी सर्टिफिकेट नहीं है तब बालक की आयु का निर्धारण मैडीकल विधि से होगा। उसका Bone Age X-ray किया जाएगा। तब पता लगेगा कि बालक की आयु क्या है।

Rishipal Singh Solanki vs The State Of Uttar Pradesh on 18 November, 2021 (2016) 12 SCC 744

इस जजमैंट के पैरा 29 में कोर्ट ने सारे कानून का निचोड़ प्रस्तुत कर दिया है –

  1. नाबालिग होने का सवाल मुकद्दमें की किसी भी स्टेज पर उठाया जा सकता है यहाँ तक कि फैसला होने के बाद भी यह आधार लिया जा सकता है। यहाँ तक कि सुप्रीम कोर्ट के सामने भी इस सवाल को पहली बार उठाया जा सकता है।
  2. उम्र के निर्धारण के लिए कोर्ट या JJ Board के सामने कहीं भी यह Application लगाई जा सकती है.
  3. जब यह सवाल कोर्ट के सामने उठाया जाएगा तो यह Section 9(2),(3) of JJ Act 2015 में किया जा सकता है। जबकि कमिटी या JJ Board के सामने यह Section 94 JJ Act 2015 में उठाया जा सकता है।
  4. कोर्ट के सामने Application लगाई जाएगी तो Section 94 (2) of JJ Act 2015 में हुई गवाही के आधार पर बालक की उम्र का निर्धारण किया जाएगा।
  5. जब कोर्ट में पेंडिंग केस के दौरान JJ Board के सामने Application लगाई जाएगी तो Section 94 की पूरी प्रक्रिया लागू होगी। संदेह की अवस्था में JJ Board भी एविडेस लेकर उम्र का निर्धारण कर सकता है। 
    1. जब भी उम्र के निर्धारण का सवाल उठाया जाएगा तो उसे साबित करने का दायित्व उसी व्यक्ति का होगा जो सवाल उठा रहा है। 
  6. लेकिन उम्र का यह को अंतिम सबूत नहीं होगा, इसे विरोधी पक्ष अपने सबूतों से चुनौती दे सकेगा।
  7. कोर्ट के सामने मुकद्दमें के दौरान की गई इंक्वायरी और JJ Board द्वारा की गई डेक्लेरेशन बिलकुल अलग बातें होंगी। कोर्ट तो अपना प्रथम दृष्टया निर्णय सामने रखेगा जबकि JJ Board द्वारा निर्धारण उस बालक की सही उम्र मानी जाएगी।
  8. ना तो यह वाँछनीय है और ना उचित कि उम्र निर्धारण का कोई अंतिम फार्मूला तय किया जाए। यह तो रिकॉर्ड पर उपस्थित सामग्री और सबूतों पर निर्भर करता है। 
    1. किसी अत्यंत टैक्नीकल गणना की कोई जरूरत नहीं है। 
    2. यदि उपलब्ध सबूतों के आधार पर दो दृष्टिकोण लेने संभव हों तो ऐसे Borderline cases में आरोपी को लाभ दिया जाने वाला दृष्टिकोण लिया जाना चाहिए। 
  9. जब उम्र निर्धारण में स्कूल Certificates आदि का सबूत लिया जाना चाहिए तो Indian Evidence Act के Section 35 का भी ध्यान रखा जाना चाहिए। पब्लिक Documents को प्राइवेट Documents के ऊपर वरीयता दी जानी चाहिए। 
  10. इस बात को ध्यान रखते हुए जो भी विश्वसनीय Documents हों उन पर कोर्ट अपना निर्णय दे। 
  11. Ossification Test उम्र निर्धारण का एकमात्र तरीका नहीं माना जा सकता है। यह अंतिम निर्धारण ना करके केवल अनुमान लगाता है। यह प्रमाणिक सबूत तो नहीं है परन्तु यदि कोई सबूत ना हो तो यह एक सहायक तरीका जरूर हो सकता है।

मेरी जानकारी के मुताबिक यह Supreme Court के द्वारा उम्र निर्धारण के कानून की अभी तक की लेटेस्ट व्याख्या है। इसने हर एक बात को स्पष्ट कर दिया है। हमने इस जजमैंट को तथा इसके पैरा 29 के उस हिंदी मंतव्य को जो अभी आपने स्क्रीन पर देखा उसे वैबसाइट पर अपलोड कर देते हैं। आप चाहें तो उसे डाउनलोड कर सकते हैं।

इस Supreme Court case की citation यहाँ लिख दी गई है। यदि फिर भी कठिनाई हो तो आप हमें सम्पर्क कीजिए हम आपको pdf यह केस भेज देंगे।

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