Your Documents of Innocence to Police
Your Documents of Innocence to Police
आज हम पुराने कोर्ट केस की बजाय एक ज्वलंत कानूनी समस्या पर विचार करने के लिए विडियो का आयोजन कर रहे हैं। सारे भारत में False Rape Allegations की यह आग लग चुकी है। हमारे छात्र, कर्मचारी, किसान, सिपाही, अधिकारी सब इस आग में झुलस रहे हैं। False Rape Allegation उनके जीवन, परिवार और भविष्य सबको नष्ट कर रहे हैं। जिम्मेदार लोगों को इस पर कोई निर्णय लेना चाहिए।
लेकिन हम अपने स्तर पर पाते हैं कि यह आग तब और भयंकर हो जाती है जब Investigation के दौरान उन युवकों की बेगुनाही के सबूत – चाहें वे फोटोग्राफ हों, पत्र हों, कॉल डीटेल्स हों, पीड़िता के मोबाइल हों, उन सबूतों को जान बूझ कर Investigation के रिकॉर्ड पर नहीं लिया जाता है। पुलिस से सामने वे आरोपी युवक केवल तड़प कर रह जाते हैं। उनके लिए झूठे आरोपों के भँवर और गहरे होते जाते हैं जिनसे निकलना लगातार कठिन होता जाता है। आज इसी विषय पर बात करते हैं कि आपकी बेगुनाही के सबूत यदि पुलिस रिकॉर्ड पर ना ले तो आपके सामने क्या कानूनी विकल्प होते हैं।
आप सभी को यह तो जरूर ही पता होगा कि दंड संहिता या Penal Code सब अपराध Criminal Procedure Code या CrPC के अन्तर्गत ही Investigate किए जाते हैं। जो Criminal Procedure Code CrPC में नहीं है उसे पुलिस रोक नहीं सकती है।
CrPC के सैक्शन 2 भाग h में Investigation की परिभाषा दी गई है।
Investigation
Sec. 2(h)”investigation” includes all the proceedings under this Code for the collection of evidence conducted by a police officer or by any person (other than a Magistrate) who is authorized by a Magistrate in this behalf;
इसके मुताबिक Investigation में पुलिस ऑफिसर या मजिस्ट्रेट के द्वारा अधिकृत व्यक्ति के द्वारा सबूत इकट्ठा करना शामिल होता है। यानि के जब पुलिस Investigation कर रही होती है तो उसका काम सबूत इकट्ठा करना होता है। सबूत के झूठ सच होने का निर्णय पुलिस का नहीं होता यह कोर्ट का होता है। यह बात ध्यान रखिएगा। सबूत इकट्ठे करने के अलावा पुलिस इस Investigation में और क्या क्या करती है यह जानना महत्वपूर्ण है। Police Investigation का सम्पूर्ण ब्यौरा CrPC के Chapter XII में दिया है। इस Chapter XII में FIR लिखने से लेकर मजिस्ट्रेट के सामने चार्जशीट दाखिल करने तक के सब काम होते हैं। जो जो भी युवा इस अवस्था से गुजर रहे हैं वे CrPC और खासतौर से Chapter XII का अध्ययन जरूर करें।
7 December, 2007 को Supreme Court ने एक केस डिसाईड किया था। Sakiri Vasu vs State Of U.P. Criminal Appeal No. 1685 of 2007। इस केस के पैरा 14 में कोर्ट ने कहा कि यदि पुलिस केस दर्ज ना करे तो Section 154(3) में पुलिस सुप्रीन्टैन्डैंट को लिखित शिकायत भेजें। यदि तब भी बात ना बने तो Section 156 की Subsection 3 जिसे बोलने में 156-3 भी कहा जाता है शिकायत संबंधित मजिस्ट्रेट को दी जानी चाहिए। वह इस केस में आज्ञा देने के अधिकारी हैं।
अपने Judgment के Para 15 में कोर्ट ने कहा
Section 156(3) provides for a check by the Magistrate on the police performing its duties under Chapter XII Cr.P.C. In cases where the Magistrate finds that the police has not done its duty of investigating the case at all, or has not done it satisfactorily, he can issue a direction to the police to do the investigation properly, and can monitor the same.
कि Section 156(3) जोकि under Chapter XII Cr.P.C. में आता है उसके तहत् मजिस्ट्रेट को पुलिस के ऊपर निरोधक शक्तियाँ प्राप्त हो जाती हैं। जब Magistrate को लगे कि पुलिस अपनी ड्यूटी सही से नहीं कर रही है या बिल्कुल निष्क्रिय हो चुकी है तो Magistrate पुलिस को सही ढंग से Investigation करने का आदेश दे सकते हैं। साथ ही वह इस पुलिस Investigation का मुआयना भी कर सकते हैं कि जाँच ठीक ढंग से की जा रही है या नहीं।
Supreme Court ने अपने बहुत से निरणयों की चर्चा की और पाया कि उनका यह Judgment कानूनी रूप से पुष्ट है और सही है। कोर्ट ने अपने फैसले में आगे कहा –
Section 156(3) Cr.P.C., though briefly worded, in our opinion, is very wide and it will include all such incidental powers as are necessary for ensuring a proper investigation.
… there is an implied power in the Magistrate under Section 156(3) Cr.P.C. to order registration of a criminal offence and /or to direct the officer in charge of the concerned police station to hold a proper investigation and take all such necessary steps that may be necessary for ensuring a proper investigation including monitoring the same.
हालाँकि Section 156(3) CrPC संक्षेप में लिखा हुआ है लेकिन इसके निहितार्थ बहुत व्यापक हैं। यह मजिस्ट्रेट को केस दर्ज करवाने और बाद में Investigation को मोनीटर करने की गंभीर शक्तियाँ प्रदान करता है। इसके तहत् Magistrate को वे तमाम् शक्तियाँ मिल जाती हैं जिससे Investigation को सही दिशा में सुनिश्चित किया जा सके।
हमने Supreme Court के इस Judgment को देखा।
यहाँ दो तीन बातें महत्त्वपूर्ण हैं
- Investigation का मुख्य काम सबूत इकट्ठा करना है। उनकी सही गलत या किस के पक्ष में और किसके विरोध में तो यह पुलिस के अधिकार में नहीं है कोर्ट के अधिकार में है।
- तो Investigation के दौरान आरोपी के पक्ष के सबूत को भी लिया जाना यह कानून सम्मत बात है कानून की विरोधी नहीं है।
- यदि पुलिस आरोपी के सबूतों को लेने से इंकार करती है तो उचित एपलीकेशन मजिस्ट्रेट के सामने लगाई जानी चाहिए।
- दूर दराज के Magistrate कई बार कानून से अनभिज्ञ हो सकते हैं तो Supreme Court का उपरोक्त Judgment – Sakiri Vasu vs State Of U.P. Criminal Appeal No. 1685 of 2007 साथ लगा दिया जाना चाहिए।
- ऐसा भी संभव है कि शुरू शुरू में कुछ साथियों को हाईकोर्ट तक जाना पड़े, लेकिन उन्हें जाना चाहिए। इसके दो लाभ होंगे –
- पहला तो यह कि आप सुरक्षित हो जाँएगे और
- दूसरा यह कि आप भविष्य के लिए उस राज्य के सब युवकों का जीवन बचाने जैसा अच्छा काम भी करेंगे। हाईकोर्ट के बाद यह उस राज्य में दुबारा से पुनर्जीवित हो जाएगा।
यदि आरोपी के सही Documents भी रिकॉर्ड पर लिए जाएँ तो बहुत लोगों की जीवन बच जाएँगे और बहुत से घर नष्ट होने से बच जाएँगे।
इस Supreme Court case की citation यहाँ लिख दी गई है। यदि फिर भी कठिनाई हो तो आप हमें सम्पर्क कीजिए हम आपको pdf यह केस भेज देंगे।
यदि आप भी कुछ मुश्किल का सामना कर रहे हैं तो हमें बताएँ। हम आपकी सहायता करेंगे और आपको सही दिशा में गाइड करेंगे। हमारे पास लगभग पूरे भारत से सहायता के लिए सामग्री आती है हम पूरी मेहनत से दिन रात एक करके सहायता उन तक पहुँचाते हैं।