रेप का झूठा आरोप CDR ने भेद खोला
यह केस – रेप का झूठा आरोप CDR ने भेद खोला एक पुराने कोर्ट केस से लिया गया मसला है। आरोपी पर आरोप था कि वह प्रोसिक्यूटरिक्स का ऑफिस कलीग था और उसने प्रोसिक्यूटरिक्स पर दबाव बनाकर तीन बार रेप किया है – पहला मार्च में, दूसरा मई में और तीसरा जून में।
केस जब इन्वेस्टीगेशन में ही था तो आरोपी को बेल मिल गई थी। पहले वकील साहब ने एक बहुत अच्छा काम यह किया था कि मजिस्ट्रेट साहब के सामने की कार्यवाही के दौरान ही एक एपलीकेशन लगा दी थी कि आरोपी और प्रोसिक्यूटरिक्स के बीच एक अन्य Mobile फोन द्वारा बातें होती थीं। इसलिए पुलिस/IO को निर्देश दिया जाए कि उस Mobile फोन का CDR भी प्राप्त करे और उसकी तफ्तीश करे। मजिस्ट्रेट साहब ने उस Mobile फोन की डीटेल्स मँगवाईं और उन्हें देखा और उसके बाद उस एपलीकेशन को मंजूर कर लिया था। यह आरोपी की बड़ी जीत थी।
रेप ट्रायल के दौरान सबसे पहला गवाह प्रोसिक्यूटरिक्स को बनाया जाता है। लेकिन Defence Counsel ने सेशन जज से अनुमति माँगी कि प्रोसिक्यूटरिक्स से पहले Mobile फोन के नोडल अफसर के बयान करवाए जाएँ। केस के पूरे तथ्यों पर गौर करने के बाद सेशन कोर्ट ने यह अनुमति भी दे दी।
अब प्रोसिक्यूटरिक्स गवाह के रूप में कोर्ट के सामने थी। उसने बयान दिया था कि आरोपी ने 23 मार्च को उसके साथ रेप किया जिससे उसकी शारीरिक हालत बहुत बिगड़ गई और उसे डॉ. के पास जाना पड़ा। फिर वह आरोपी से बचती बचाती ऑफिस जाती थी। लेकिन 16 मई को और फिर 19 जून को भी आरोपी ने उसके साथ रेप किया।
Defence Counsel ने अपना क्रॉस एक्ज़ामिनेशन शुरू किया।
तो मिज़ प्रोसिक्यूटरिक्स 23 मार्च के बाद तो आप आरोपी से बहुत भयभीत हो गई थीं।
जी हाँ उसने बताया।
आपके बयान के मुताबिक आपकी हालत भी बिगड़ गई थी
जी बहुत हालत खराब हो गई थी। दर्द और डर से मेरी हालत खराब थी।
Defence Counsel ने सीधा सवाल किया – तो मिज़ प्रोसिक्यूटरिक्स तब आप 23 मार्च से 24 मार्च के बीच आरोपी से 5 बार टेलीफोन करके क्या बात कर रही थीं? आपकी बातचीत की कुल अवधि 50 मिनट से अधिक की है।
कोर्ट में सन्नाटा छा गया।
वह बोली – वह तो आरोपी ने धमकी दी थी कि मुझे कॉल कर वरना जान से मार दूँगा।
Defence Counsel – तब तो आपने यह धमकी वाली बात पुलिस को भी बताई होगी।
प्रोसिक्यूटरिक्स बोली लिखित में नहीं बताई थी लेकिन मुँह से कहा जरूर था कि वह धमकी दे रहा है।
अच्छा तो यह बताइए कि आपने यह शिकायत 6 अक्टूबर को की थी। और जनवरी से लेकर 3 अक्टूबर तक लगातार आपकी आरोपी से बातें होती रही हैं। रोजाना कई कई बार होती रही हैं। आपने आरोपी से बातें करना बंद क्यों नहीं किया?
प्रोसिक्यूटरिक्स बोली – मैंने कोई बात नहीं की और मैं दबाव में थी। मुझे आरोपी ने जान से मारने की धमकी दी थी कि कॉल नहीं करेगी तो जान से मार दूँगा।
अब तक जज साहब कोर्ट क्वैश्चन शुरू कर चुके थे –
मिज़ प्रोसिक्यूटरिक्स आप महीनों तक आरोपी से बातें करती हैं। उससे संबंध बन जा रहे हैं। फिर वे महीनों तक चलते हैं। अक्टूबर में आपकी लड़ाई हो जाती है और आप रेप का केस दर्ज करवा देती हैं।
आप मुझे इस दोहरे व्यवहार का कारण बताइए।
प्रोसिक्यूटरिक्स चुप रही।
प्रोसिक्यूटरिक्स के वकील बोले – जनाब ये बातें फाइनल आर्गूमैंट के समय देखेंगे अभी तो गवाही होने दें प्लीज़।
नहीं वकील साहब। कोर्ट को सवाल पूछने का हक है और गवाह के आचरण को नोट करने का भी हक है जिसे डिमीनर कहते हैं।
जज सहाब ने प्रोसिक्यूटरिक्स का डिमीनर नोट किया और बाद में इसी आधार पर आरोपी को बरी कर दिया। इस प्रकार रेप का झूठा आरोप CDR ने भेद खोला नाम का यह केस अपने मुकाम तक पहुँचा।
आज भी अनेक ऐसे मामले हैं जिनमें स्त्री और पुरुष आपसी सहमति के आधार पर मित्र होते हैं। जैसे ही उनमें मनमुटाव हो जाता है तो उस पुरुष के खिलाफ सैक्शुअल एसॉल्ट का केस दर्ज करवा दिया जाता है। यह कानून का दुरुपयोग है। ऐसे पुरुषों के पक्ष में कानून का सहारा देना होगा। उन्हें सपोर्ट देना है हमारी NGO Indian Legal System का काम है।